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रज़िया और टाँगेवाला लेखिका: रज़िया सईद
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मेरा नाम रज़िया सईद है। मेरी उम्र अठाईस साल है और मैं दिल्ली में एक स्कूल में टीचर हूँ। मेरे शौहर का एक्स्पोर्ट का कारोबार है और हमारी अभी कोई औलाद नहीं है। मेरा फिगर ३६/२७/३८ है और कद पाँच फुट चार इंच है। मेरा रंग गोरा है, हालाँकि दूध जैसा सफ़ेद तो नहीं लेकिन काफी गोरी हूँ मैं। मुझे अपने जिस्म की नुमाईश करने की बेहद शौक है। दूसरों को अपने जिस्म के जलवे दिखाने का मैं कोई मौका नहीं छोड़ती क्योंकि मुझे अपने फिगर पर बेहद फख्र है। जिस्म की नुमाईश करते वक्त मैं सामने वाले की उम्र का लिहाज़ नहीं करती क्योंकि मेरा ये मानना है कि मर्द तो मर्द ही होता है फिर उसकी उम्र कितनी भी हो। कोई भी मर्द किसी हसीन औरत के जिस्म की झलक पाने का मौका नहीं छोड़ता फिर चाहे वो उसकी रिश्तेदार ही क्यों ना हो। चौदह से साठ साल तक की उम्र वालों को मैंने अपने जिस्म को गंदी नज़रों से ताकते हुए देखा है।
मैंने देखा है कि सभी मर्द खासतौर से मेरी गाँड को सबसे ज्यादा घूरते हैं। मेरे शौहर और दूसरे कुछ लोगों ने भी मुझे कईं दफा बताया है कि मेरी गाँड मेरे जिस्म का सबसे हसीन हिस्सा है। मैं भी ये बात मानती हूँ क्योंकि मैं जब भी चूड़ीदार सलवार-कमीज़ या टाईट जींस के साथ हाई हील वाले सैंडल पहन कर मार्किट या भीड़ से भरी बस या ट्रेन में जाती हूँ तो लोगों की नज़रें मेरी गाँड पर ही चिपक जाती हैं। कईं लोग तो मेरे चूतड़ों पर चिकोटी काटने या कईं बार मेरी गाँड पे हाथ फेर कर सहलाने से भी बाज़ नहीं आते। लोग सिर्फ मेरी गाँड को ही तवज्जो नहीं देते बल्कि मेरे मम्मों को भी छूने की कोशिश करते हैं। कईं दफा, खासतौर से जब मैं भीड़ वाली बस में मौजूद होती हूँ तो मेरे आसपास खड़े मर्द अपनी कुहनियों या कंधों से मेरे मम्मों को दबाने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा जिस स्कूल में मैं पढ़ाती हूँ वहाँ भी अपने जिस्म के जलवे दिखाने की अपनी इस आदत से बाज़ नहीं आती और जब स्कूल के लड़के भी गंदी नज़रों से कसमसते हुए मुझे देखते हैं तो मुझे बेहद मज़ा आता है।
मामूली छेड़छाड़ का मैं कभी कोई एतराज़ नहीं करती लेकिन अगर मेरी मरज़ी के बगैर कभी कोई जबरदस्ती हद पार करने की कोशिश करे तो उसकी अकल ठिकाने लगा देती हूँ। ये सब पब्लिक में होने की वजह से ये बिल्कुल मुश्किल नहीं होता। पहले तो मैं गुस्से से घूरती हूँ और अगर कोई शख्स फिर भी बाज़ ना आये तो शोर मचा देती हूँ और आसपास के लोग फिर उसकी खबर ले लेते हैं। इसका ये मतलब नहीं है कि मैं कभी भी हद पार नहीं करती क्योंकि कभी-कभार मेरा दिल हो तो बात चुदाई तक भी पहूँच जाती है। अब तक मैंने कईं अजनबियों के लण्ड अपनी चूत में लिये हैं। महीने में एक-दो बार तो ऐसा हो ही जाता है। अजनबियों से चुदवाने का ये सिलसिला दो साल पहले ही शुरू हुआ था।
अब मैं वो किस्सा बयान करने जा रही हूँ जब मैंने पहली बार बहक कर अपने जिस्म की नुमाईश करने और थोड़ी-बहुत छेड़छाड़ की खुद की बनायी हद पार की और अजनबियों के साथ चुदाई में शामिल हो गयी। मेरा यकीन मानिये, मुझे इस चुदाई में बेहद मज़ा आया जबकि ये वाकया एक गरीब टाँगेवाले के साथ हुआ था। उस वाकये के बाद ही मेरी हिम्मत खुल गयी और मैं कभी-कभार हद पार करते हुए अजनबियों से चुदवाने लगी।
हुआ ये कि एक बार मुझे दूर की रिश्तेदार की शादी में शामिल होने के लिये हमारे गाँव जाना पड़ा। मैं वहाँ अपने अपनी सास और चचेरे देवर के साथ जा रही थी। मेरे शौहर काम के सिलसिले में टूर पे गये हुए थे और वहीं से सीधे शदी में पहुँचने वाले थे। मेरा चचेरा देवर जो हमारे साथ जा रहा था वो सोलह साल का बच्चा था। अब आप सोचेंगे कि सोलह साल का लड़का तो बच्चा नहीं होता लेकिन अकल से आठ-नौ साल के बच्चे जैसा ही था। गाँव में पला बड़ा हुआ था और जिस्मानी रिश्तों से बिल्कुल अंजान था। मैं ये बात यकीन से इसलिये कह सकती हूँ कि मैं कईं बार अपने हुस्न और जिस्म की नुमाईश से उसे फुसलाने की नाकाम कोशिश कर चुकी थी। आखिर में मैं इस नतीजे पर पहुँची कि इस बेवकूफ गधे को फुसलाने में वक्त ज़ाया करने का कोई फायदा नहीं। मेरी सास की उम्र साठ साल है और उनकी नज़र कमज़ोर है। उन्हें रात के वक्त दिखायी नहीं देता। हम ट्रेन से अपने गाँव जा रहे थे और ट्रेन स्टेशन पर रात को तीन घंटे देर से सवा नौ बजे पहुँची जबकि पहुँचने का सही वक्त शाम के साढ़े छः का था।
जब हम स्टेशन पर उतरे तो ये जान कर हैरानी हुई कि स्टेशन पे हमें लेने कोई नहीं आया था। ये छोटा सा स्टेशन था और गाँव वहाँ से थोड़ा दूर था। मैंने फोन करने की कोशिश की लेकिन वहाँ पर नेटवर्क भी नहीं था। हमने पंद्रह मिनट इंतज़ार किया और सोचा कि रात बहुत हो चुकी है और हमें खुद ही गाँव चलना चाहिये। स्टेशन के बाहर आकर हम गाँव जाने का कोई ज़रिया देखने लगे। रात बहुत हो चुकी थी इसलिये कोई बस या आटो-रिक्शॉ वहाँ मौजूद नहीं था। बस कुछ टाँगे खड़े थे वहाँ पर। और कोई चारा ना देख कर मैंने टाँगे वालों से हमें गाँव ले चलने के लिये पूछना शुरू किया लेकिन कोई भी तैयार नहीं हुआ क्योंकि हमारा गाँव वहाँ से करीब बीस किलोमीटर दूर है।
फिर मुझे महसूस हुआ कि एक दर्मियानी उम्र का टाँगेवाला दूर कोने में खड़ा लगातार मुझे घूर रहा है। अचानक मुझे एक ख्याल आया और मैंने इस मौके का पूरा फायदा उठाने का सोचा। मैं उस टाँगे वाले के करीब गयी और उससे हमें गाँव ले चलने की गुज़ारिश लेकिन उसने ये कहते हुए मना कर दिया कि “मेमसाब! अभी रात बहुत हो गयी है… आपके गाँव जायेंगे तो हमारे तो रात भर का धंधा खराब हो जायेगा!”
मैंने फिर उससे इल्तज़ा की, “प्लीज़ हमको हमारे गाँव छोड़ दो ना - देखो हम अकेली लेडीज़ लोग हैं, कैसे घर जायेंगे… तुम हमें घर छोड़ दो… हम तुम्हें थोड़े ज्यादा पैसे दे देंगे!”
“अरे! पर हमारा तो सारा धंधा ही खराब हो जायेगा ना मेमसाब! आपको छोड़ कर तो वापस क्या आयेंगे - तब तक सब ट्रेन छूट जायेगी!”
मैंने नोटिस किया कि मुझसे बात करते वक्त वो बेशर्मी से मेरे मम्मों को देख रहा था जिनका कटाव मेरे गहरे गले के ब्लाऊज़ में से साफ नज़र आ रहा था। उसे फुसलाने के लिये मैंने अपनी चुनरी सम्भालने का नाटक करते हुए चुनरी इस तरह एडजस्ट कर ली कि अब वो मेरे बड़े मम्मे का और भी साफ-साफ दीदार कर सके। फिर मैंने बेहद कातिलाना मुस्कुराहट के साथ अपनी नज़रें नीचे करके अपने मम्मों को देखते हुए उससे फिर एक बार गुज़ारिश की, “प्लीज़ हमें ले चलो - तुम्हें अच्छा इनाम मिल जायेगा!” और फिर मैंने बेहद लुच्ची हरकत की। उसकी टाँगों के बीच लंड की तरफ सीधे देखते हुए मैंने एक हाथ से अपना बाँया मम्मा दबा दिया और दूसरे हाथ से अपने लहंगे के ऊपर से ही अपनी चूत को मसल दिया। मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
हम जहाँ खड़े थे वहाँ थोड़ा अंधेरा था, इसलिये किसी से पकड़े जाने का डर नहीं था। मैंने उसे इतना खुलकर साफ इशारा दे दिया था जितना कि कोई औरत किसी अजनबी को दे सकती है। वो भी मेरा इशारा समझ गया और हमें ले जाने के लिये राज़ी होते हुए बोला, “अच्छा मेमसाहब! आप कहती हैं तो चलता हूँ पर इनाम पुरा लूँगा!” ये कहते हुए उसकी आँखें मेरे मम्मों पर और लहंगे में चूत वाले हिस्से पर ही जमी थीं जैसे कि कह रहा हो कि मेरी चूत भी लेगा।
इतना बेहतरीन मौका देने के लिये मैंने दिल ही दिल में अल्लाह का शुक्रिया अदा किया क्योंकि हमारा ट्रेन का सफ़र बहुत ही उबाऊ और बेरंग था। हम ए-सी फर्स्ट क्लास में सफर कर रहे थे इसलिये किसी भी मस्ती-मज़े और छेड़-छाड़ का कोई ज़रिया नहीं था। खैर हम लोग टाँगे पर बैठे। मैं और मेरी सास पीछे वाली सीट पर बैठे और मेरा देवर आगे वाली सीट पर टाँगे वाले की बगल में बैठा। करीब पंद्रह मिनट के बाद हम पक्की सड़क से एक सुनसान कच्ची सड़क पर मुड़े। इस सड़क पे कोई रोशनी नहीं थी और ऐसा महसूस हो रहा था जैसे जंगल में से गुज़र रहे हों। कोई और गाड़ी उस सड़क पर नज़र नहीं आ रही थी। मेरी सास तो टाँगे पर बैठते ही सो गयी थी और अब खर्राटे मार रही थी। यही हाल मेरे देवर का भी था जो टाँगे का साईड का डंडा पकड़े सोया हुआ था।
ठीक ऐसे वक्त पर टाँगेवाले ने टाँगा रोक दिया और बोला, “मेमसाब! आप आगे आके बैठिये, क्योंकि पीछे की तरफ लोड ज्यादा हो गया है घोड़ा बेचारा इतना लोड कैसे खींचेगा, और इस बच्चे को भी पीछे आराम से बिठा दीजिये!”
मैं फौरन समझ गयी कि उसका असली इरादा क्या है लेकिन फिर भी अंजान बनते हुए बोली, “नहीं रहने दो ना ऐसे ही ठीक है!”
“ऐसे नहीं चलेगा… घोड़ा तो आपके घाँव तक पहुँचने से पहले ही मर जायेगा… आइये - आप आगे बैठिये!”
मैंने देखा कि मेरी सास अभी भी खर्राटे मार रही थी और मेरे देवर का भी यही हाल था। मजबूरी का नाटक करते हुए मैं टाँगे से उतरी और आगे जा कर अपने देवर को जगाया। “असलम उठो! जाकर पीछे बैठो… मैं इधर आगे बैठुँगी!”
असलम बहुत ही सुस्त सा नींद में वहाँ से उठा और बिना कुछ बोले पीछे वाली सीट पर जा कर बैठ गया और मैं आगे की सीट पर टाँगेवाले की बगल में बैठ गयी। टाँगा फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। पंद्रह-बीस मिनट के बाद मैंने देखा कि असलम फिर सो गया है और इस बार उसने अपना सिर मेरी सास की गोद में रखा हुआ था। अब अगर वो अचानक जाग भी जाता तो हमें आगे देख नहीं सकता था। अब मैं बहुत खुश थी क्योंकि उस ठरकी टाँगेवाले को तड़पाने और लुभाने का और अब तक के बेरंग सफ़र में कुछ मज़ा लेने का ये बेहतरीन मौका था।
वैसे तो मैं हमेशा सलवार-कमीज़ या जींस-टॉप ही पहनती हूँ लेकिन हम शादी में जा रहे थे तो मैंने डिज़ायनर लहंगा-चोली पहना हुआ था और चोली के ऊपर झिनी सी चुनरी थी। नेट के कपड़े का झिना सा लहंगा था इसलिये उसके नीचे स्लिप (पेटीकोट) भी पहना हुआ था। एहतियात के तौर पे सफर के दौरान ज़ेवर नहीं पहने थे लेकिन पूरा मेक-अप किया हुआ था और पैरों में चार इंच ऊँची पेंसिल हील वाले फैंसी सैंडल पहने हुए थे। मैंने हमेशा महसूस किया है कि हाई हील के सैंडल पहनने से मेरा फिगर और ज्यादा दिलकश लगता है और मेरी कसी हुई गोल-गोल गाँड इमत्याज़ी तौर पे ऊपर निकल आती है।
मैंने फिर अपनी चुनरी को इस तरह एडजस्ट किया ताकि चोली में कसा मेरा एक मम्मा नज़र आये और फिर टाँगेवाले की तरफ देखते हुए मैंने पूछा, “अरे तुम्हारा घोड़ा तो बहुत धीरे-धीरे चल रहा है! लगता है कि जैसे इसमें जान ही नहीं है!”
बेहयाई से मेरे मम्मों को देखते हुए टाँगेवाला बोला, “अरे मेमसाब जी! अभी आपने मेरा घोड़ा देखा ही किधर है! जब उसे देखोगी तो घबरा कर अपना दिल थाम लोगी!”
उसे और शह देने के मकसद से मैंने अपनी चोली का एक हुक खोल दिया। चोली में तीन ही हुक थे और बैकलेस चोली होने की वजह से मैंने नीचे ब्रा भी नहीं पहनी हुई थी। एक तो मेरी चोली पहले से ही बेहद लो-कट थी और अब हुक खोलने से मेरे मम्मों की घाटी का काफी हिस्सा टाँगेवाले की नज़रों के सामने नुमाया हो गया। टाँगे के ऊपर लटके लालटेन की हल्की रोशनी में ये नज़ारा देख कर टाँगेवाले को सही इशारा मिल गया। वो बोला, “मेमसाब! कभी मौका देकर तो देखिये हमारे घोड़े को… सवारी करके आपका दिल खुश हो जायेगा! पूरा मज़ा ना आये तो नाम बदल दूँगा!”
मैं कहने ही वाली थी कि “अपना या फिर…” लेकिन फिर जाने दिया। मैं उसकी दोहरे मतलब वाली बातें समझ रही थी कि हकीकत में वो ये कहना चाह रहा था कि मैं उसे अपनी चूत चोदने का एक मौका दे दूँ तो वो पूरी तरह मेरी दिलभर कर तसल्ली करवा देगा। उसे और तड़पाने के लिये मैं थोड़ा आगे को झुकते हुए बोली, “सवारी क्या खाक करायेगा! मुझे तो लगता है कि तुम्हारा घोड़ा तो एकदम बुड्ढा हो गया है देखो कैसी मरियल चाल है इसकी!”
टाँगेवाला बोला, “वो तो मेरा घोड़ा मेरे काबू में है… जब तक मैं इसे सिगनल नहीं दूँगा, ये उठेगा और भगेगा नहीं!” ये कहते हुए वो लुंगी के ऊपर से ही खुल्लेआम अपना लौड़ा सहलाने लगा।
उसकी दोहरी मतलब वाली बातों से मेरी चुदास भड़क रही थी और ज्यादा मज़ा लेने के लिये मैं उसकी तरफ थोड़ा और खिसक गयी। अब मेरा एक मम्मा टाँगे के हिचकोलों के साथ उसके कंधे को छू रहा था। टाँगेवाले ने जब देखा कि मैं उसे पूरी शह दे रही हूँ तो वो अपनी कोहनी से मेरे मम्मों को दबाने लगा। मुझे तो इसमें कोई एतराज़ था ही नही लेकिन मैंने एक बार पीछे की सीट पर ये तहकीक करने के लिये नज़र डाली मेरी सास और देवर गहरी नींद सो तो रहे हैं। फिर मुझे अपने जिस्म के उससे सटने के असर का भी एहसास हुआ - टाँगेवाले का लंड ने लुंगी में खड़े होकर उसे तंबू की शकल दे दी थी।
मैंने हंसते हुए मज़ाक में उसे छेड़ा, “अरे! तुम्हारा घोड़ा तो उठने लग गया!”
“अरे मेमसाब! इसे खाने का सामान दिखेगा तो बेचारा अपना मुँह तो खोलेगा ही ना… आखिर कब तक भूखा रहेगा!”
अब मुझे तड़पाने की बारी उसकी थी। इसलिये उसने अपनी लुंगी इस तरह धीरे से सरकायी कि उसकी जाँघें बिल्कुल नंगी हो गयी और एक झटके में ही वो किसी भी पल अपना लंड मेरे सामने नुमाया कर सकता था। मैं तो उसका लण्ड देखने के मरी जा रही थी। लुंगी के पतले से कपड़े में से उसके लंड की पूरी लंबाई नामोदार हो रही थी। करीब आठ-नौ इंच लंबे उस गोश्त को अपने हाथों में पकड़ने की मुझे बेहद आरज़ू हो रही थी। इसलिये टाँगेवाले को और उकसाने के लिये मैं मासूमियत का नाटक करते हुए अपने मम्मे उसके कंधे पर और ज्यादा दबाने लगी जिससे उसे ये ज़ाहिर हो कि टाँगे के हिचकोलों की वजह से ये हो रहा है। मेरे मम्मों की गर्मी उसे महसूस हो रही थी जिसके असर से लुंगी में उसका तंबू और बुलंद होने लगा और खासा बड़ा होकर खतरनाक नज़र आने लगा। मैं समझ नहीं पा रही थी कि अब भी वो टाँगेवाला खुद पे काबू कैसे कायम रखे हुए था। फिर लालटेन की मद्धम रोशनी में मैंने नोटिस किया कि उसके लंड का सुपाड़ा लुंगी के किनारे से नज़र आ रहा था।
“या मेरे खुदा!” मैं हैरानी से सिहर गयी। उसके लंड का सुपाड़ा वाकय में बेहद बड़ा था - किसी बड़े पहाड़ी आलू और लाल टमाटर की तरह। रात के अंधेरे में वो पूरी शान और अज़मत से चमक रहा था। मैं जानती थी कि इतना बड़ा सुपाड़ा देखने के बाद अब मैं ज्यादा देर तक खुद पे काबू नहीं रख पाऊँगी। उसे अपने होठों में लेकर उसे चूमने और उसे चाटने के लिये मैं तड़प उठी थी।
सूरत-ए-हाल अब बिल्कुल बदल चुके थे। उसे अपने हुस्न और अदाओं से दीवाना बनाने की जगह अब वो मुझे ही अपने बड़े लण्ड के जलवे दिखा कर ललचा रहा था। मैं अब और आगे बढ़ने से खुद को रोक नहीं सकी और अपनी चोली का एक और हुक खोल दिया। वैसे भी मेरी चोली में तीन ही हुक थे और उसमें से एक तो पहले ही खुला हुआ था और अब दूसरा हुक खुलते ही मेरे दोनों मम्मे चोली में से करीब-करीब बाहर ही कूद पड़े और अब खुली हवा में ऐसे थिरक रहे थे जैसे अपनी आज़ादी का जश्न मना रहे हों।
टाँगेवाले ने ये नज़ारा देखा तो शरारत से मेरे कान में धीरे से फुसफुसा कर बोला, “अरे मेमसाब! ये क्या… आपने तो अपने मम्मों को पूरा ही खुला छोड़ दिया, क्या हुआ आपको?”
मैंने कहा, “क्या करूँ! गर्मी बहुत है ना… इन बेचारों को भी तो रात की थोड़ी ठंडी हवा मिलनी चाहिये… बेचारे दिन भर तो कैद में रहते हैं!” सच कहूँ तो रात की ठंडक में अपने नंगे मम्मे को टाँगे के हिचकोलों के साथ झुलाते हुए उस ठरकी की बगल में बैठना बेहद अच्छा लग रहा था।
लहंगे में छुपी मेरी चूत की तरफ देखते हुए टाँगेवाला बोला, “तो फिर तो मेमसाब नीचे वाली को भी तो थोड़ी हवा लगने दो ना! उसे क्यों बंद कर रखा है!” ये कहते हुए उसने अपने हाथ मेरी जाँघों पर रख दिये और मेरी मुलायम और गोरी सुडौल टाँगों को नामूदार करते हुए लहंगा मेरी जाँघों के ऊपर खिसकने लगा - जैसे कि इशारा कर रहा हो कि मैं अपना लहंगा पूरा ऊपर खिसका कर अपनी चूत का नज़ारा उसे करा दूँ।
लेकिन मैंने उसे ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि मैं उसे थोड़ा और तड़पाना चाहती थी। मैं बोली, “अरे पहले ऊपर का काम तो मुकम्मल कर लें! नीचे की बात बाद में सोचेंगे ना!”
टाँगेवाला मेरे करीब-करीब नंगे मम्मों को देख रहा था जो चोली में से बाहर झाँक रहे थे। वैसे तो चोली का आखिरी हुक खोलना बाकी था लेकिन अमलन तौर पे तीसरे हुक का कोई फायदा नहीं था क्योंकि मेरे मम्मे तो झिनी चुनरी में से पूरे नंगे नुमाया हो ही रहे थे। टाँगेवाले से और सब्र नहीं हुआ और मेरे मम्मों को अपने हाथों में लेकर मसलने लगा। उसके मजबूत और खुरदरे हाथों के दबाव से मैं कंपकंपा गयी। मैं सोचने लगी कि जब इसके हाथों से मुझे इतनी लज़्ज़त मिल रही है तो अपने लंड से वो मुझे कितना मज़ा देगा।
फिर वो बोला, “मेमसाब आप अपने मम्मों का दीदार हमें छलनी में से छान कर क्यों करा रही हैं… ज़रा इस पर्दे को हटा दीजिये!” वो मेरी चुनरी की तरफ इशारा कर रहा था लेकिन इस दिल्चस्प शायराना अंदाज़ में उसे अपनी ख्वाहिश का इज़हार करते देख मैं मुस्कुराये बिना नहीं रह सकी।
बरहाल उसकी गुज़ारिश मानते हुए मैं अपनी चोली का आखिरी हुक खोलते हुए बोली, “तुम्हारी तमन्ना भी पूरी कर देते हैं… लो अब तुम दिल भर के मेरे मम्मों से खेल लो… पर तुम सिर्फ़ अपने बारे में ही सोचते रहोगे या हमारा भी कुछ ख्याल रखोगे?” मैं उसके बड़े लंड की तरफ देखते हुए बोली जो अब तक बेहद बड़ा हो चुका था और पहला मौका मिलते ही मेरी चूत फाड़ने के लिये तैयार था। मैं उस हैवान को हाथों में लेने के लिये इस कदर तड़प रही थी कि एक पल भी और इंतज़ार ना कर सकी और उसे अपनी लुंगी खोलने का भी मौका नहीं दिया और झपट कर उसका लौड़ा अपने हाथों में ले लिया।
ऊऊऊहहह मेरे खुदा! या अल्लाहऽऽ… वो इतना गरम था जैसे अभी तंदूर में से निकला हो! मुझे लगा जैसे मेरी हथेलियाँ उसपे चिपक गयी हों। मैं वो लौड़ा हाथों में दबान लगी जैसे कि मैं उसके कड़ेपन का मुआयना कर रही होऊँ। मेरी चूत भी उस लंड को लेने के लिये बिलबिला रही थी। उस पल मैंने फैसला किया कि जिस्म की सिर्फ नुमाईश और ये छेड़छाड़ और मसलना काफी हो गया… आज की रात तो मैं इस लौड़े से अपनी चूत की आग ठंडी करके रहुँगी। अब मैं उससे चुदवाये बगैर नहीं रह सकती थी। इस दौरान टाँगेवाला एक हाथ से मेरे मम्मों से खेलने में मसरूफ था। वो मेरे निप्पलों को मरोड़ रहा था और झुक कर उन्हें चूसने की कोशिश भी कर रहा था लेकिन टाँगे के हिचकोलों की वजह से ठीक से चूस नहीं पा रहा था। मैं उसके लण्ड को इतनी ज़ोर-ज़ोर से मसल रही थी जैसे कि ज़िंदगी में फिर दोबारा मुझे दूसरा लण्ड नसीब नहीं होगा। फिर कमीने लण्ड का ज़ुबानी एहतराम करने के लिये मैं उसे अपने मुँह में लेने के लिये झुक गयी।
उस शानदार लौड़े को मुँह में लेकर चूसने के लिये मैं झुकी। या मेरे खुदा… उसका लंड इतना गरम महसूस दे रहा था कि मुझे लगा अगर मैंने उसे थोड़ी और देर पकड़े रखा तो मेरी हथेलियाँ जल जायेंगी। रात के अंधेरे में लण्ड का सुपाड़ा ज़ीरो-वाट के लाल बल्ब की तरह चमक रहा था। लेकिन जैसे ही मेरे प्यासे होंठ टाँगेवाले के लंड को छुए, उसने मेरा चेहरा दूर हटा दिया और बोला, “मेमसाब… रुकिये तो सही… आप ही ने तो कहा था कि पहले ऊपर का मामला निबटा लेते हैं फिर नीचे की सोचेंगे! तो फिर आप मेरे लौड़े को मुँह में लेने से पहले मुझे भी तो अपनी चूत के दर्शन करा दीजिये!”
हर गुज़रते लम्हे के साथ-साथ मैं और ज्यादा बेसब्री हुई जा रही थी। अब तक मैं इस कदर गरम और उसकी दीवानी हो चुकी थी कि मैं समझ गयी कि वो मुझसे जो चाहे करवा सकता है। सच कहूँ तो मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि मैं बस उस बहाव के साथ बह जाना चाहती थी। बिल्कुल बेखुद हो कर मैं उससे बोली, “तुम्हें जो करना है कर लो लेकिन अपने इस मुसटंडे लण्ड से मुझे दिल भर कर प्यार कर लेने दो!” तकरीबन मुकम्मल तौर पे मैं अब उसके लंड की गुलाम थी। वो बोला, “तो फिर पहले अपना घाघरा ऊपर करके मुझे अपनी चूत दिखाओ!”
मैंने उसके हुक्म की तामील की और धीरे-धीरे थोड़ी दिलफरेबी करते हुए अपना लहंगा ऊपर उठा दिया। नीचे मैंने पैंटी भी नहीं पहनी थी। वैसे तो अंधेरा काफी था लेकिन लालटेन की मद्धम रोशनी में मेरी चिकनी सफाचट चूत उसे साफ नज़र आ रही थी जिसपे रोओं तक का नामोनिशान नहीं था। मुझे और मेरे शौहर को भी बिल्कुल साफ-चिकनी चूत पसंद है। मैं टाँगेवाले के चेहरे की तरफ देख रही थी कि मेरी चूत देखकर उसपे क्या असर होता है। वो तो बिल्कुल बेखुद सा हुआ नज़र आ रहा था जैसे कि उसे कुछ बोलने के लिये अल्फाज़ ही नहीं मिल रहे हों।
आखिरकार मैंने ही पूछा, “क्या हुआ! बोलती क्यों बंद हो गयी तुम्हारी? क्या सिर्फ देखते ही रहने का इरादा है मेरी चूत को!”
वो जैसे वापिस होश में आते हुए बोला, “मेमसाब! राम कसम हमने अभी तक १५-१६ चूतें देखी हैं और चोदी भी हैं पर ऐसी चूत उफफफ… क्या कहें… इसके लिये… ऐसी देसी कचोरी की तरह फुली हुई चूत तो आज मैं पहली बार देख रहा हूँ! आपके पति तो दुनिया के सबसे ज्यादा किस्मत वाले आदमी हैं… जिन्हें इस चूत का उद्घाटन करने को मिला होगा! अब तो बस इस चूत को चोदे बिना मैं आपको अपनी घोड़ा-गाड़ी से उतरने नहीं दूँगा… चाहे जो हो जाये!”
मैं बोली, “चाहती तो मैं भी ये ही हूँ… पर इस चलती घोड़ा-गाड़ी में ये कैसे मुमकीन है... तुम ही बताओ!”
“मेमसाब अगर आप साथ दें तो मैं आज की रात को आपकी ज़िंदगी की एक यादगार रात बना दूँगा… पर आपको मेरा साथ खुलकर देना होगा!”
“अब और क्या कुछ खोलूँ…? सब कुछ तो खोल के रख ही दिया है तुम्हारे सामने!” मैं अपनी चूत और मम्मों की तरफ इशारा करते हुए बोली।
“नहीं! मैं ये कहना चाहता था कि इस टाँगे में तो ये काम नहीं हो सकता… तो ऐसा करते हैं कि यहाँ से आधा किलोमीटर दूर मेरे एक दोस्त का ढाबा है जो रात भर खुला रहता है… कहिये तो वहाँ चलते हैं! वहीं पे आपके साथ पूरी ऐश करेंगे… कसम से आपको भी मज़ा आ जायेगा!”
“ठीक है तो वहीं चलते हैं! चलो!” मैं उसका लण्ड अपने मुँह और रस बहाती हुई चूत में लेने के लिये एक पल का भी इंतज़ार करने की हालत में नहीं थी।
“पर आपके साथ वालों का क्या करेंगे?”
“इनकी चिंता तुम मत करो! इन्हें हम चाय में नींद की गोलियाँ मिला कर दे देंगे… तुम बस जल्दी से ढाबे में चलो!” ये कहकर मैं फिर उसका लण्ड मुँह में लेने के लिये नीचे झुक गयी। जब मैंने उसका लण्ड अपने मुँह में लिया तो वो एहसास मैं बयान नहीं कर सकती। खुदाई एहसास था वो। इतना लज़ीज़ लंड था की क्या कहूँ। मैं उसका तमाम लौड़ा नीचे से सुपाड़े तक बार-बार चाट रही थी।
टाँगेवाले ने भी अब सिसकना शुरू कर दिया और सिसकते हुए बोला, “हाँऽऽऽऽ मेमसाब! इसी तरह से मेरे लण्ड को चाटिये… हायऽऽऽऽ क्या मज़ा आ रहा है… सही में प्यार करना तो कोई आप जैसी शहर की औरतों से सीखे… हाय कितना मज़ा आ रहा है हायऽऽऽ बस इसी तरह से…!” मैंने भी उसका लण्ड चाटने की रफ्तार बढ़ा दी और बीच-बीच में उसके टट्टे या सुपाड़ा मुँह में लेकर अच्छी तरह से चूस लेती थी।
अचानक मुझे अपनी सास के खाँसने की आवाज़ सुनाई दी। मेरी सास की आँख खुल गयी थी और उसने मुझसे पूछा, “बहू! हम कहाँ तक पहुँच गये?” अपनी सास के इस तरह बे-वक्त उठने पर मुझे इतनी मायूसी हुई और गुस्सा भी आया कि कह दूँ कि “टाँगेवाले के लंड तक पहुँच गये हैं… क्यों साली तुझे भी चूसना है क्या?” लेकिन मैंने अपने जज़्बातों पर काबू किया और बस इतना बोली, “अम्मी… अभी तो हम आधे रास्ते तक तक ही पहुँचे हैं!” ये भी एक तरह से सच ही था क्योंकि अब तक मैं टाँगेवाला का लण्ड सिर्फ पकड़ने और चूसने में ही कामयाब हुई थी लेकिन चूत में नहीं लिया था। टाँगेवाला घबरा गया था और मुझे अपने से परे हटाने की कोशिश कर रहा था लेकिन मैंने उसे ऐसा करने से रोक दिया। मैं जानती थी कि उसकी डर बे-बुनियाद है क्योंकि मेरी सास को दिन में भी मुश्किल से नज़र आता है और रात के अंधेरे में तो अंधी जैसी ही थी। मैंने लण्ड चूसना ज़ारी रखा।
यकीन मानें, अपनी सास की मौजूदगी में एक अजनबी का लंड चूसते हुए मुझे अजीब सा सनसनी खेज़ मज़ा आ रहा था और वो कुछ कर भी नहीं सकती थी। टाँगेवाले को भी शायद एहसास हो गया कि मेरी सास को रात में नज़र नहीं आता। उसने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और इशारा किया कि मैं उसका लंड चूसना ज़ारी रखूँ। उसका नौ इंच लंबा और तीन इंच मोटा लंड मेरे थूक से सरासर भीगा हुआ और ज्यादा चमक रहा था और मैं उसे और ज्यादा भिगोती जा रही थी।
अचनक टाँगेवाला धीरे से फुसफुसाया, “हाय मेमसाब! प्लीज़ ज़रा और जोर से चूसिये और मेरे गोटे भी सहलाइये तो… एक बार मेरा पानी निकल जायेगा… फिर ढाबे में ऐश करेंगे आराम से!”
अब मेरी सास के पूरी तरह जगे होने की वजह से हम खुल कर बातें नहीं कर सकते थे लेकिन फिर मैंने सोचा कि अगर टाँगेवाले का एक दफा इखराज हो जाता है तो दूसरे राऊँड में यकीनन मुझे ज्यादा लुत्फ देगा। इसलिये मैंने उसके लंड पर ज्यादा प्रेशर लगाया और उसके गोटे सहलते हुए मैंने एक और दबंग हरकत की। धीरे से आगे खिसक कर मैंने बंदूक की गोली जैसे अपने निप्पल उसके लंड के सुपाड़े पर लगा दिये और धीरे से उससे बोली, “देखो कैसे मेरे निप्पल तुम्हारे लौड़े को चूम रहे हैं… उफफफफ!” मुझे पता था कि उसका इखराज होने के करीब ही है, इसलिये उसे और जोश दिलाने के लिये मैं अपने निप्पल उसके लंड पे रगड़ने लगी।
वो अपने क्लाइमैक्स के बेहद करीब था और कराहने लगा, “आआआहहहऽऽऽऽऽ मैं तो गया आअहहहऽऽऽऽ!” और इसके साथ ही उसके लंड से पिचकारियाँ छूट कर मेरे मम्मों और चेहरे पर गिरने लगी। उसके लण्ड से आखिरी बूँद तक निचोड़ लेने के लिये मैंने उसे सहलाना ज़ारी रखा। उसकी मलाई का ज़ायका इतना लज़ीज़ था कि मैं अपने चेहरे और मम्मों पे लगी मलाई बस चाटती ही रह गयी। उसे हवस भरी नज़रों से देखते हुए मैं अपनी उंगलियाँ भी चाटने लगी। जब मैंने नीचे देखा तो मेरे निप्पलों से टपकती उसके लंड की मलाई बेहद चोदू नज़ारा पेश कर रही थी।
इस दौरान मेरी सास ने शायद टाँगेवाले का कराहना सुन लिया था और उसने पूछा, “क्या हुआ? कौन गया? अरे भाई टाँगेवाले… तुम्हें क्या हुआ है?”
“माता जी ये मेरा घोड़ा बेचारा बहुत थक गया है… इसे थोड़ी देर आराम करना है… इसलिये हम… यहाँ एक ढाबा है… वहीं पर थोड़ी देर रुक जाते हैं! आप लोग चाय पी लीजियेगा और मेरा घोड़ा थोड़ा चारा खा लेगा… नहीं तो ये घोड़ा यहीं पर दम तोड़ देगा!” टाँगेवाले ने कहा। फिर वो मेरे निप्पलों से टपकती अपने लंड की मलाई देख कर धीरे से फुसफुसाया, “मेमसाब ज़रा अपने मम्मों पर पर्दा डाल लीजिये… हम ढाबे तक पहुँचने ही वाले हैं!”
मुझे कुछ दूरी पर मद्धम सी रोश्नी नज़र आयी और मैं अपनी चोली के हुक लगाने लगी तो अचानक टाँगेवाले ने मुझे चोली के हुक लगाने से रोकते हुए ईशारा किया कि मैं अपने मम्मे बस चुनरी से ढक लूँ। मैंने भी चुनरी से ही अपने मम्मे ढक लिये और उसकी तरफ मुस्कुराते हुए इस अंदाज़ में देखा जैसे की पूछ रही होऊँ कि यही चाहता था ना तू… अब तो खुश है? ऊसके चेहरे पर भी तसल्ली भरी मुस्कुराहट थी।
मेरी सास ने पूछा, “भैया यहाँ पर कितनी देर रुकेंगे?”
ढाबे पर टाँगा रोकते हुए वो बोला, “माता जी बस थोड़ी देर… इतने में आप लोग चाय पी लो… मैं अभी लेकर आया!” उसने मुझे भी उसके साथ आने का इशारा किया तो मैंने भी इशारे से ही उसे समझा दिया कि अभी नहीं… मैं बाद में आऊँगी!
टाँगेवाला ढाबे में चला गया और कुछ देर में दो गिलास चाय लेकर लौटा तो उसके साथ उसी की तरह दरमयानी उम्र का आदमी भी था। टाँगेवाले ने मुझसे इशारे से नींद की गोलियाँ माँगी तो मैंने अपने पर्स में से निकाल कर दे दीं। उसने वो गोलियाँ दो गिलासों में मिला दीं और एक गिलास मेरी सास को दिया और फिर मेरे देवर को उठाने लगा, “लो बबुआ! थोड़ी सी चाय ले लो… अभी हम थोड़ी देर यहाँ रुकेंगे!” हम पूरी तसल्ली कर लेना चाहते थे कि मेरा देवर भी हमारी ऐय्याशी के दौरान नींद से जाग कर मज़ा खराब ना कर दे। मैंने महसूस किया कि टाँगेवाले के साथ जो दूसरा शख्स आया था वो मेरे करीब-करीब नंगे मम्मों को हवसनाक नज़रों से देख रहा था। मुझे तो वैसे भी अपना जिस्म दिखाने का शौक था तो मैंने कोई एतराज़ नहीं किया लेकिन उसे मैंने ज्यादा बढ़ावा भी नहीं दिया। नींद की गोलियों का असर जानने के लिये करीब पाँच मिनट के बाद मैंने अपने देवर को नाम लेकर आवाज़ दी। जब उसने कोई आवाज़ नहीं दी तो मेरे होंठों पर मुस्कान फैल गयी। इसका मतलब दोनों फिर से गहरी नींद के आगोश में जा चुके थे और इस बार दो-तीन घंटे से पहले हिलने वाले नहीं थे।
फिर मैं टाँगे से उतरने लगी तो टाँगेवाला दौड़ कर मेरे पास आया और मदद के लिये अपना हाथ मुझे दिया, “मेमसाब! आराम से उतरिये… लो मेरे हाथ को पकड़ लो!” लेकिन उस बदमाश ने एक चालबज़ी कर दी और जैसे ही मैंने उसका हाथ थामा तो उसने चालाकी से दूसरे हाथ से मेरी चुनरी इस तरह खींच दी कि लगे कि गलती से ऐसा हो गया। उसकी इस हरकत से मेरे मम्मे उस दूसरे अजनबी की नज़रों के सामने बिल्कुल नंगे हो गये। मेरे तने हुए निप्पल तो जैसे उस ललकार रहे थे। वैसे तो मैं ऐसे मौके खुद ही तलाशती रहती हूँ पर उस वक्त मैं नहीं चाहती थी कि वो अजनबी शख्स कोई गलत मतलब निकाले। मैं अपने मम्मों पर चूनरी वापस लेते हुए टाँगेवाले को थोड़ा गुस्से से बोली, “ज़रा एहतियात से हाथ लगाना था ना!” कमीनेपन से मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देख कर टाँगेवाला बोला, “अरे मेमसाब! इससे कैसी शरम… ये तो अपना ही आदमी है!” मेरे खुल्ले बर्ताव और नर्मी की वजह से वो टाँगेवाला धीरे-धीरे दिलेर होता जा रहा था।
अब मैं समझी कि उसने मुझे चोली के हुक लगाने से क्यों रोका था। हम ढाबे के मुत्तसिल बने कमरे की तरफ चल पढ़े। टाँगेवाला मेरे साथ चल रहा था जबकि उसका साथी हमारे पीछे-पीछे चल रहा था। अचानक से टाँगेवाले ने मेरे चूतड़ों पर हाथ रख दिया मेरी गाँड दबाते हुए बोला, “मेमसाब आपकी गाँड तो आपके मम्मों से भी ज्यादा मज़ेदार है… आप शहरी औरतें ये ऊँची ऐड़ी की सैंडल पहन कर अपनी गाँड उभार कर बहुत मटकाती हो… हाय मैं तो आज आपकी गाँड ही मारूँगा!” ये कहते हुए वो खुल्लेआम मेरे चूतड़ सहला रहा था। उसे परवाह नहीं थी कि उसका दोस्त हमारे पीछे ही आ रहा है और ये सब हरकतें उसे नज़र आ रही होंगी।
मैंने एतराज करते हुए कहा, “तुम्हे जो करना है वो कर लेना पर यहाँ अपने दोस्त के सामने तो मेरी इज़्ज़त रखो… नहीं तो वो क्या सोचेगा मेरे बारे में!”
अब तक हम कमरे तक पहुँच चुके थे और टाँगेवाले का दोस्त बाहर ही खड़ा रहा। उसने हमारे साथ कमरे में आने की कोशिश नहीं की। तब टाँगेवाला बोला, “देखो मेमसाब! आगर आपको मुझसे चुदवाने का मन है तो मेरे दोस्त को भी खुश करना होगा… नहीं तो जाओ मैं भी आपको नहीं चोदुँगा!”
उसी वक्त उसने अपनी लुंगी खोल दी और पहली दफा मैंने पूरी रोश्नी में उसका लंड देखा - ओहह वल्लाह! वाकय में मेरे अंदाज़ से भी बेहद बड़ा और शानदार बिना-खतना लंड था और मेरी चूत चोदने की उम्मीद में फिर से अकड़ कर खड़ा था। मैं उसकी गंदी(?) बातों से इस कदर गरम और चुदासी हो चुकी थी कि किसी भी कीमत पर ये मौका हाथ से निकलने नहीं देना चाहती थी। लेकिन उसके दोस्त से चुदवाने का मेरा कोई इरादा नहीं था, इसलिये उसे मनाने के मकसद से मैं बोली, “प्लीज़ देखो… तुम जो कहोगे मैं करूँगी… मगर प्लीज़… मुझे उस आदमी से… चुदवाने को नहीं कहो प्लीज़!” मेरी नज़रें उसके लंड पर ही टिकी हुई थीं जो और बड़ा होने लगा था।
मुझसे सब्र नहीं हुआ और तभी झुककर उसे मुँह में लेकर चूसने लगी। लंड चूसते हुए मैं रंडी की तरह उससे बोली, “ऊऊऊहहह मेरे खुदाऽऽऽ - हायऽऽऽ… कितना शानदार है तुम्हारा लौड़ा… दिल कर रहा है कि इसे चूसती ही रहूँ - हाय - प्लीज़ऽऽऽ जल्दी से मुझे चोदो अपने इस हलब्बी लंड से - मैं तो कब से तरस रही हूँ!” उसके पूरे लंड और खसकर उसके सुपाड़े पर मैं अपनी जीभ फिराते हुए चुप्पे लगा रही थी।
अपने लंड से मुझे दूर ढकेलते हुए वो बोला, “मेमसाब देखिये - या तो हम दोनों दोस्त मिल लर आपको चोदेंगे… या फिर आपको कोई भी नहीं। अगर आपको मंज़ूर हो तो हाँ बोलो वरना आप अभी भी जाकर टाँगे में बैठ सकती हैं!”
उसके लंड और अपने होंठों की ये दूरी मैं ज़रा भी बर्दाश्त नहीं कर सकी और मैं उसके लंड के लिये गिड़गिड़ा कर भीख मंगते हुए बोली, “नहीं प्लीज़… ऐसा ज़ुल्म नहीं करो… देखो तुम मुझे इस तरह प्यासी नहीं छोड़ सकते… तुम्हें मुझे चोदना ही पड़ेगा… प्लीज़ इस तरह मत तरसाओ मुझे!”
“तो फिर मेरे दोस्त के लिये भी हाँ कह दो ना… आपको भी तो डबल मज़ा आयेगा जब दो आदमी एक साथ आपको चोदेंगे!”
ये मेरी ज़िंदगी का वो कमज़ोर लम्हा था जब मैं हवस में बिल्कुल बेखुद होकर अपने बारे में, अपने सोशल-स्टेटस, अपने शौहर और बाकी सब कुछ भूल गयी थी। उस वक्त मेरे लिये सबसे ज्यादा अहमियत तो सिर्फ उस टाँगेवाले से ज़ोरदार चुदाई कि थी। शायद इसलिये कि मेरे शौहर तीन हफ्तों से दौरे पर गये हुए थे और आज इस टाँगेवाले के साथ मस्ती भरी छेड़छाड़ ने और उसके शानदार लण्ड ने मेरे अंदर बेतहाशा आग भड़का दी थी। मैं सारी हदें पार करके एक अजनबी गरीब टाँगेवाले से चुदवाने के लिये तड़प रही थी। किसी गरम और चुदासी कुत्तिया जैसी हालत थी मेरी। आखिरकार मुझे उस टाँगेवाले की ख्वाहिश के सामने झुकना ही पड़ा और मैंने उसके और उसके दोस्त के साथ ग्रुप-चुदाई के लिये रज़ामंदी दे दी। थ्री-सम चुदाई के ख्याल से मुझे सनसनी सी भी महसुस होने लगी थी। इंटरनेट पर ब्लू-फिल्मों में अक्सर ये सब देख कर मैं गरम हो जाया करती थी लेकिन हकीकत में खुद मुझे ये सब करने का मौका मिलेगा ये कभी नहीं सोचा था।
मेरे ऊपर झुककर मेरे चेहरे को ठोडी से पकड़ते हुए उसने फिर से एक बार पूछा, “चल बता - क्या तू हम दोनों दोस्तों से एक साथ चुदाने को तैयार है?”
उसकी आँखों में झाँकते हुए मैंने हाँ कहते हुए फिर रज़ामंदी जता दी। वो मेरी ठोडी पकड़े हुए भी मेरी हवस से गुलाबी आँखों में झाँक रहा था। लेकिन हैरानी तो मुझे ये हो रही थी कि अचानक उसका लहज़ा तबदील हो गया था और वो “मेमसाब” और “आप-आप” से सीधे “तू-तू” करने लगा था।
अभी भी मेरी ठोडी को पकड़े हुए उसने फिर मुझसे पूछा, “हम लोग तुझे कुत्तिया बना कर चोदेंगे एक साथ… अगर तुझे नहीं पसंद है तो अभी ना बोल दे… नहीं तो बाद में हम रुकेंगे नहीं!”
मैंने उसकी ये शर्त भी मंज़ूर कर ली लेकिन फिर मैंने अपनी एक शर्त भी उसे बता दी, “लेकिन पहले तू एक बार अपने इस मोटे लौड़े से मेरी चू रही चूत को रगड़-रगड़ के चोद के इसको ठंडा कर दे - फिर तू जो कहेगा वो मैं करने को तैयार हूँ!” मैं भी अब “तुम” से “तू” पर आ गयी थी। वो भी मेरी शर्त मान गया लेकिन एक बार फिर मुझे ताकीद कर दिया कि बाद में मुझे उन दोनों से एक साथ चुदवाना पड़ेगा।
इसके बाद वो फिर मेरे करीब आया और मेरी आँखों में झाँकते हुए बोला, “ले राँड! मेरे इस प्यारे लंड को अपने मुँह में ले कर चूस… और इसे फिर से खड़ा कर… टाँगे में तो तेरी अम्मा (सास) जाग गयी थी तो मज़ा नहीं आया था… पर यहाँ पर कोई नहीं आने वाला है!” मुझे भी और क्या चाहिये था। मैं भी तो बिल्कुल यही आरज़ू कर रही थी कि उसका अज़ीम लंड अपने लबों में ले लूँ। मैंने लपक कर उसे पकड़ लिया और बड़े चाव से उसे अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। उसका लंड चूसते हुए मैं उसके चूतड़ों को दबाते हुए अपने लंबे नाखूनों से खुरच रही थी। उसका लण्ड फिर से सख्त होने लगा था। मैं दस मिनट तक चुप्पे मार-मार के इतनी ज़ोर-ज़ोर से उसका मोटा लंड चूसती रही की मेरे होंठ दुखने लगे।
वो अब ज़ोर-ज़ोर से कराहते हुए ये अल्फाज़ बोल रहा था, “चूस साली… और जोर से चूस मेरा लंड… तुझे शहर में ऐसा लौड़ा नहीं मिलेगा… ऊऊऊहहऽऽऽऽ येऽऽऽ मेरी गाँड भी सहला साली… आंआंऽऽऽऽ हाय क्या लौड़ा चूसती है तू… तूने तो राँडों को भी पीछे छोड़ दिया लंड चूसने में… हायऽऽऽऽ मेरी कुत्तिया… बस इसी तरह सेऽऽऽऽ!”
थोड़ी देर और अपना लंड चुसवाने के बाद उसने मुझे चूसने से रोक दिया, “बस बहुत हो गया अब… छोड़ मेरे लंड को नहीं तो इसका पानी ऐसे ही निकल जायेगा… फिर तेरी चूत प्यासी ही रह जायेगी!”
मैंने उसका लंड मुँह में से निकाला और उसके अंदाज़ में बोली, “साले! अगर अब मेरी चूत प्यासी रह गयी तो तेरे इस लंड को काट के अपने साथ ही ले जाऊँगी। ले - अब जल्दी से मेरी चूत चोद!” ये कहते हुए मैंने अपना लहंगा उतार फेंका और चटाई पे लेट कर अपनी चूत उसे दिखाते हुए बोली, “अब प्लीज़ जल्दी कर… देख कब से मेरी चूत प्यासी है… जल्दी से आ और अपने लण्ड से इसकी प्यास बुझा!”
मैं अब सिर्फ ऊँची पेन्सिल हील की सैंडल पहने बिल्कुल नंगी वहाँ लेटी हुई दो टके की रंडी की तरह उसके लंड की भीख माँग रही थी। वो मेरे करीब आया कुछ पलों के लिये मेरी खुली हुई दिलकश चूत निहारता रहा और फिर बोला, “मैंने गाँव में इतनी चूतें देखी और चोदी भी हैं पर एक भी तेरी चूत के जैसी नहीं थी… हाय क्या मक्खन के जैसी चूत है तेरी… और ये तेरी माँसल जाँघें… ये गोरी लंबी टाँगें और ऊँची ऐड़ी की सैंडल में ये प्यारे पैर… इन्हें देखकर तो नामर्दों का भी लंड खड़े होकर सलामी देने लग जायेंगे… हायऽऽऽ मैं मर जाऊँ तेरी इस अदा पर!”
उसकी महज़ बातों से मैं झल्ला गयी और बोली, “अबे चूतिये… अब चोदेगा भी या ऐसे ही खड़ा-खड़ा निहारता रहेगा और शायरी करता रहेगा… देख साले… मेरी चूत में आग लगी हुई है!” मैंने फैसला कर लिया था कि अगर वो मेरे साथ गंदे अल्फाज़ और गालियाँ इस्तेमाल कर सकाता है तो चुदाई के मज़े में इज़ाफे के लिये मैं भी वैसा ही करुँगी।