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रज़िया और टाँगेवाला

इतने में टाँगेवाला मेरे सामने आया और अपना लौड़ा मुझे पेश कर दिया। मैंने मुँह खोल कर जितना मुमकिन हो सकता था उतना लंड अपने हलक तक ले लिया और चूसने लगी। “साली तुम शहरी औरतें जितनी मस्त होती हो उतना ही नखरा भी करती हो… पहले देसी दारू पीने को मना कर रही थी और फिर बाद में खुद ही शौक से गटागट इतनी दारू पी गयी… अब देख जब हम दोनों एक साथ चोदेंगे तो तू ही मज़े से चुदवायेगी गाँड और चूत एक साथ… मैं तो कहता हूँ एक बार मूत पी कर भी देख ले… उसका भी चस्का लग जायेगा तुझे!”

मेरे खयाल में उस टाँगेवाला का लंड चूसना उस रात की सबसे खास और बेहतरीन चीज़ थी। उसका लौड़ा इतना बड़ा होने के साथ-साथ इस कदर प्यारा और लज़ीज़ था कि कोई भी चुदासी औरत अपनी तमाम ज़िंदगी उस नौ इंच के गोश्त को चूसते और उससे चुदते हुए गुज़ार सकती थी। टाँगेवाला कराहने लगा, “हाँ चूस इसे साली राँड साली बापचुदी… और ज़ोर से चूस फिर तुझे सारी ज़िंदगी ऐसा लौड़ा चूसने को नहीं मिलेगा! इसे ऐसे ही प्यार से चूसेगी तो मैं भी तेरी गाँड प्यार से मारूँगा आआहहहऽऽऽऽ हाऽऽऽय… और चूस साली राँड… तेरी माँ के भोंसड़े में घोड़े का लंड… आआआऽऽऽऽ!” किसी बेइंतेहा चुदासी कुत्तिया की तरह मैं दीवानगी और वहशियानेपन से उसका लंड चूस रही थी।
 
करीब पाँच मिनट मुझसे लंड चुसवाने के बाद टाँगेवाला बोला, “बड़ी मादरचोद औरत है तू साली… क्या लौड़ा चूसती है… तेरे बाप ने तुझे सिखाया होगा… क्यों… चल अब मेरा लंड छोड़… इसे तेरी गाँड में घुसाने का वक्त आ गया है!” ये कहते हुए वो अपना लंड मेरे मुँह में से निकाल कर मेरे पीछे की तरफ चला गया।

टाँगेवाला बोला, “अबे साले… अभी तक इसकी ले ही रहा है… फाड़ दे साली की चूत… चल हट… अभी तक मैं होता तो इसकी चूत और गाँड दोनों एक हो जाते… चल हट… राँड के नीचे लेट और नीचे से चूत मार इसकी… बहुत प्यार आ रहा है इस गुदमरानी पर… अरे मैं सब जानता हूँ… इस जैसी औरत का तो एक आदमी से काम नहीं चलने वाला… ऊपफ गाँड देखी ना तूने इसकी और इसकी चूत… अभी भी लगता है कि भोंसड़ी की चूत कुँवारी ही है… इसका शौहर तो इसकी गुलामी करता होगा… इसकी सैंडल के तलवे चाटता होगा और खुद इसके लिये नये-नये मर्दों का इंतज़ाम करता होगा!” अब तक मुझे भी उनकी ये ज़लील बातें अच्छी लगने लगी थीं।मेरे बारे में ये सब ज़लील बातें बोलकर ये दोनों मुस्टंडे शायद अपनी खुद की मस्ती में इज़ाफा कर रहे थे।
 
“क्या कह रहा है… सच में?” ढाबेवाला मेरे नीचे लेटते हुए बोला और छोटे बच्चे की तरह मेरे मम्मे पकड़ कर फिर से चूसने लगा। मैंने उसके हलब्बी लौड़े पर बैठ कर उसे अपनी चूत में ले लिया। ज़रा वक्त तो लगा पर आहिस्ता से मैंने उसका तमाम लौड़ा चूत में ले लिया और उसके गोटे मुझे गाँड के करीब महसूस होने लगे।

टाँगेवाले ने पीछे से दो उंगलियाँ मेरी गाँड में घुसा दीं। उसकी दोनों उंगलियों को मेरी गाँड में घुसने में ज्यादा दिक्कत नहीं आयी । ये देख कर वो बेहद खुश हुआ और बोला, “देख साली कुत्तिया! अब तो तेरी गाँड भी लंड खाने के लिये तैयार हो गयी… ले अब संभाल मेरा मूसल अपनी गाँड में!”

ये कहते ही टाँगेवाले ने अपना लौड़ा मेरी गाँड में घुसा दिया। अपनी गाँड में उसके लंड के इस तरह ज़बरन घुसने का दर्द मुझसे बर्दाश्त ही नहीं हुआ और बहुत ज़ोर से चींखने की कोशिश की। लेकिन टाँगेवाले को शायद पहले से ही ये अंदाज़ा था कि मैं चीखुँगी इसलिये उसने अपना हाथ मेरे मुँह पे दबा कर उसे बंद कर रखा था। मुझसे बिल्कुल रहा नहीं गया और मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। लेकिन मेरे आँसुओं और दर्द से बेखबर वो दोनों हरामज़ादे मुझे चोदने में लगे रहे। मुझे लगा जैसे दो गरम-गरम फौलादी डंडों ने मेरी चूत और गाँड एक साथ छेद दी हों। ढाबेवाला नीचे से बेहद तेज़ रफ्तार से मुझे चोद रहा था और साथ में मेरे लटक रहे मम्मों को चूसते हुए बेरहमी से मसल रहा था और निप्पलों को खींच-खींच कर मरोड़ रहा था।
 
ढाबेवाला मेरे मम्मे चूसते हुए बड़बड़ाने लगा, “हाय काश इन मम्मों में दूध होता तो मज़ा आ जाता… फिर तो आज चोदते-चोदते दूध भी पी लेता!”

ये सुनकर मैं बोली, “अरे भड़वे… दूध पीना था तो अपनी अम्मी के पास क्यों नहीं गया?”

टाँगेवाला बोला, “क्यों कुत्तिया… अब तेरा दर्द कहाँ गया… अब तो साली कुत्तिया तू मज़े ले-ले कर गाँड मरवा रही है!” तब मुझे एहसास हुआ कि मेरा दर्द गायब हो चुका था और मैं एक साथ अपनी चूत और गाँड में डबल धक्कों का मज़ा लेते हुए ज़ोर-ज़ोर से आहें भर रही थी।

थोड़ी देर के बाद मेरी चूत में ढाबेवाले के लंड की मलाई का इखराज शुरू हो गया और मस्ती में बोला, “आआआहहहऽऽऽ हाय… ले मेरा पानी पी ले राँड… हाआआऽऽऽय मैं तो गया… चल रंडी साली कुत्तिया… ले मेरा सारा पानी पी जा अपने भोंसड़े में… आहहाआऽऽऽऽ!” मेरी चूत में अपने लंड का पानी भरके ढाबेवाला फारिग हुआ और मेरे नीचे से खिसक कर अलग गया।

दूसरी तरफ टाँगेवाला अभी भी मेरे पीछे शिद्दत से डटा हुआ था। मेरी चूत में से ढाबेवाले की मलाई रिसते हुए टपक रही थी और टाँगेवाला मेरी गाँड मारते हुए अपनी एक उंगली मेरी रिसती चूत में घुसा कर उसमें उंगली करने लगा। ढाबेवाले के हलब्बी लंड से पहले ही मेरी चूत दो बार फारिग होकर अपना पानी छोड़ चुकी थी इसलिये टाँगेवाले के उंगली करने से चूत में जलन होने लगी थी। टाँगेवाले को मैं अपनी चूत में से उंगली हटाने के लिये बोली, “अरे चूतिये… मेरी गाँड तो मार ही रहा ना… वो क्या कम है जो मेरी चूत में भी उंगली डाल रहा है… क्या एक ही रात में पूरा वसूल करना है… चल जल्दी से चूत में से उंगली निकाल वरना गाँड से भी हाथ धो बैठेगा!”
 
टाँगेवाला भी अब बुलंदी पर पहुँचने के करीब था और कुछ ही पलों में उसके लंड का माल मेरी चूत में इखराज़ हो गया। कम से कम आधा कप जितनी मलाई उसने मेरी गाँड में छोड़ी होगी।उसकी गाढ़ी मलाई से मुझे अपनी गाँड लबालब भरी हुई महसूस हो रही थी। अपनी तमाम मनि मेरी गाँड में इखराज़ करके वो चटाई पर बैठ गया। मैंने उसकी तरफ देखा तो बहुत थका हुआ नज़र आया। मैं भी थोड़ी देर वहीं लेट गयी।

थोड़ी देर बाद टाँगेवाला मुझसे बोला, “मेमसाब! कैसा लगा आपको दो-दो लौड़ों से एक साथ चुदवा कर?”

उसका सवाल सुनकर मेरे होंठों पर मुस्कान आ गयी क्योंकि वो फिर मुझे इज़्ज़त से मेमसाब और आप कह कर बुला रहा था। मैं आह भरते हुए बोली, “सुभान अल्लाह! ऐसा मज़ा ज़िंदगी में कभी नहीं मिला था… मेरे शौहर तो कभी मुझे ऐसे चोद ही नहीं सकते… सच में मज़ा आ गया… चुदाई, गाँड-मराई और वो ठर्रा भी… अभी तक नशा बरकरार है…!”

फिर वो बोला, “तो फिर कब मिल रही हो हमें?”

मैंने कहा, “कभी नहीं! जो हुआ उसे एक हसीन ख्वाब समझ कर भुल जाओ… आज के बाद मैं तुम्हें कभी भी नहीं मिलुँगी… और कभी मिल भी गये तो दूर से ही सलाम… ठीक है ना?”
 
“ठीक है मेमसाब! आप कहती हैं तो आपकी बात तो माननी ही पड़ेगी… पर एक आखिरी इच्छा भी पूरी कर देती तो…?” वो बोला।

“अब भी कुछ बाकी रह गया है क्या… हर तरह से तो चोद दिया तुम दोनों ने मुझे… अब और क्या चाहते हो?” मैंने हंसते हुए कहा।

“वो क्या है कि आपके मुँह में मूतने की इच्छा बाकी रह गयी!” वो मेरे करीब आते हुए बोला।

ढाबेवाला भी ये सुनकर गुज़ारिश करते हुए बोला, “जी मेमसाब… हमारी ये इच्छा भी पूरी कर दो तो मज़ा आ जायेगा!”

“तुम दोनों फिर बकवास करने लगे… मैं नशे में ज़रूर हूँ पर इतना होश तो बाकी है मुझमें!” मैं झल्लाते हुए बोली।

“देखो आप फिर नखरा करने लगीं… एक बार चख कर तो देखो… अगर मज़ा ना आये तो मैं जबर्दस्ती नहीं करुँगा… पर कोशिश तो आपको करनी ही पड़ेगी… ऐसे तो हम आपको नहीं छोड़ेंगे…!” उसके नर्म लहज़े में थोड़ी सख्ती भी थी और मैं जानती थी कि ये दोनों अपनी मरज़ी पूरी करके ही मानेंगे और नशे की वजह से शायद मैं भी ज्यादा ही दिलेर हो रही थी। मैंने सोचा कि दोनों ने मुझे चोद कर इतना मज़ा दिया और बेइंतेहा तस्कीन बख्शी है तो मेरा भी इतना फर्ज़ तो बनता ही है! वैसे कोशिश करने में हर्ज़ ही क्या है… क्या मालूम मुझे भी अच्छा ही लगे और थोड़ा सा पी कर देखुँगी… अगर अच्छा नहीं लगा तो इन्हें रोक दूँगी और सब थूक दूँगी! ये सोच कर मैंने हिचकिचाते हुए मंज़ूरी दे दी, “ठीक है… पर जब मैं रुकने को कहूँ तो और ज़बर्दस्ती ना करना!” हैरानी की बात ये है कि हकीकत में मुझे ज़रा भी घिन्न या नफरत महसूस नहीं हो रही थी… बस ज़रा सी हिचकिचाहट थी।
 
“अरे आपको ज़रूर मज़ा आयेगा… ऐसा चस्का लग जायेगा कि आज के बाद रोज़-रोज़ अपना ही मूत पीने लगोगी…!” मेरी रज़ामंदी देख कर टाँगेवाला खुश होते हुए बोला और मेरे करीब आकर मेरे चेहरे के सामने खड़ा हो गया। अभी भी मैं बस ऊँची पेंसिल हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी फर्श पर बैठी हुई थी। उसने अपना लंड मेरे होंठों पर रखा तो और मैंने उसका आधा-खड़ा लंड अपने मुँह में लिया जोकि अभी कुछ पल पहले ही मेरी गाँड में से निकला था।

मैं उस गंदे लंड को शौक से लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी जो उसकि मनि और मेरी खुद की गलाज़त से सना हुआ था। फिर उसने अपना लंड ज़रा पीछे खींच लिया जिससे अब सिर्फ उसका सुपाड़ा मेरे मुँह में था और उसने धीरे से गरम-गरम पेशाब की ज़रा सी धार छोड़ी। मैंने हिचकिचाते हुए उसे अपने मुँह में ही घुमाया तो उसका ज़ायका बुरा नहीं लगा और मैं उसे पी गयी। खट्टा सा और ज़रा सा कड़वा और तीखा ज़ायका था। मैंने कोई एतराज़ नहीं किया तो टाँगेवाले ने इस दफा थोड़ा ज्यादा मूत मेरे मुँह में छोड़ा। मैंने एक बार फिर उसका मूत अपने मुँह में घुमा कर उसका ज़ायका लिया तो पिछली बार से ज्यादा बेहतर लगा। उसके बाद तो मैंने इशारे से उसे और मूतने को कहा और वो लगातार लेकिन धीरे-धीरे मेरे मुँह में अपने मूत की धार छोड़ने लगा और मैं खुशी से गटगट पीने लगी। जब उसका मूतना बंद हुआ तो उसने लंड का सुपाड़ा मेरे मुँह से बाहर निकाल लिया। अपने हाथ के पीछे से अपने होंठ पोंछते हुए मैंने ढाबेवाले को अपने करीब आने को कहा, “अब तुझे क्या मूतने के लिये दावातनामा भेजूँ… चल आजा और करले अपनी ख्वाहिश पूरी!”
 
टाँगेवाला बोला, “देखा मेमसाहब! मैं जानता था कि आपको स्वाद बहुत अच्छा लगेगा! देखो कैसे गट-गट पी गयी और खुद ही मेरे दोस्त को भी अपने मुँह में मूतने के लिये बुला रही हो!”

मैं कुछ नहीं बोली, बस मुस्कुराते हुए उसे देख कर आँख मार दी। इतने में ढाबेवाला भी मेरे सामने खड़ा था। मैंने उसका लंड पकड़ कर अपने मुँह में अंदर लिया और चार-पाँच चुप्पे लगाये और फिर सिर्फ उसका सुपाड़ा अपने मुँह में लेकर उसपे अपने होंठ कस दिये। फिर अपनी नज़रें उठा कर उसके चेहरे की तरफ देखते हुए “ऊँहह” करके घुरघुरा कर उसे मूतने के लिये इशारा किया। ढाबेवाला अपने दोस्त की तरह मुहतात नहीं था और मेरे मुँह में तेज़ी से मूतने लगा। मैंने बेहद कोशिश की लेकिन मैं उतनी तेज़ी से उसका मूत पी नहीं पा रही थी और थोड़ा सा मूत मेरे होंठों के किनारों से बाहर मेरे जिस्म पर बहने लगा।
 
ढाबेवाले का मूत पीने के बाद मैंने एक कपड़े से अपना जिस्म पोंछा और फिर अपने कपड़े पहने। बाहर आकर देखा तो मेरी सास और देवर आभी भी आराम से गहरी नींद सो रहे थे, इस बात से बिल्कुल अंजान कि अंदर छोटे से कमरे में क्या गुल खिल रहे थे। ये देख कर मैं मुस्कराये बगैर ना रह सकी।

खैर, ये पहली दफा मैंने अपने शौहर से बेवफाई करके किसी गैर-मर्द या कहो कि दो गैर-मर्दों से चुदवाया था। इसके बाद तो मेरे हौंसले बुलंद हो गये और और मैं इसी तरह अक्सर गैर-मर्दों से चुदवाने का सिलसिला शुरू हो गया और इन दो सालों में अब तक अस्सी-नब्बे लंड मेरी चूत और गाँड की सैर कर चुके हैं।
 
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