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हाई भाई लोग अगर आप लोग मेरी फर्स्ट स्टोरी को पढ़ रहे होंगे तो आपको पता होगा की ये स्टोरी किस बारे में हाई अगर आप नए हो तो शार्ट में बताता हूँ ये स्टोरी एक अडल्ट्री इंटरफेथ का इन्सेस्ट वर्शन हाई ये स्टोरी उस स्टोरी से कुछ सिमिलरटीज रखेगी और भी बहुत से स्टोरीज से सिमिलरटीज रखेगी चाहे वो इंग्लिश हो बंगाली हो इन्सेस्ट हो अडल्ट्री हो और या इरोटिक हो लेकिन बहुत कुछ अलग भी होगा. ये एक इंटरफेथ ब्लड इन्सेस्ट स्टोरी हाई तो जिन्हे ये न पसंद हो वो न पढ़े. ये पूरी माँ बेटा बेस्ड है और थोड़ी अडल्ट्री हुमिलेशन है में चाहूंगा आप लोग मुझे इसे अडल्ट्री बनाने पर फाॅर्स न करे मुझे मना करने में बनेगा नहीं. में एक इन्सेस्ट राइटर हूँ और इन्सेस्ट स्टोरी ही लिखता हूँ.
डिस्क्लेमर- इस स्टोरी का किसी भी रियल लाइफ पर्सन प्लेस और थिंग से कोई लेना देना नहीं हाई और अगर हुआ भी तो वो एक मात्रा संयोग होगा. ये स्टोरी किसी भी धर्म जाती को नुक्सान नहीं पहुंचना चाहता हाई अगर आपको धर्म से दिक्कत है तो प्लस इसे न पढ़े. (आप अपने आईडिया जरूर भेज सकते है प्राइवेट या थ्रेड पर वैसे में चाहूंगा आप लोग थ्रेड पर भी मैसेज करे बहुत लोग मुझे सिर्फ प्राइवेट मैसेज करते हैं वैसे मुझे इससे ज्यादा प्रॉब्लम नहीं है)
धन्यवाद.
आज मैँ बहुत दुखी थी क्यूंकि आज मुझे मुंबई छोड़कर कोलकाता जाना था.इसका कारन मेरे पापा थे , पापा ने अपना बिज़नेस बढाकर मैन ब्रांच कोलकाता में खोल लिया था , इसीलिए पापा ने मेरी माँ का ट्रांसफर भी कोलकाता सरकारी स्कूल में करा दिया और एडमिशन भी उसी सरकारी स्कूल में .
पापा ने मुझे और माँ को साथ में भेज दिया ताकि हम वहाँ थोड़ा घुल मिल जाये. पापा बाद में सारे काम ख़तम कर आने वाले थे.वैसे हमारी आर्थिक स्तिथि बहुत अच्छी थी लेकिन पापा चाहते थे की माँ खुद अपने पैरों पर खरे उतरे इसीलिए पापा माँ से नौकरी करवाते थे. मैं बेचारी तो जाना भी नहीं चाहती थी लेकिन पापा के जोर देने पर जाना पर रहा था.
कोलकाता में मेरी नानी का घर था; वहाँ सिर्फ मेरी नानी रहती थी. मेरे मामा और मॉमी विदेश में रहते है और नाना की भी डेथ बहुत पहले हो चुकी थी. मेरी नानी का घर कोई बड़े सहर में नहीं था वो एक छोटा सा सहर था मर्शिदाबाद.
इनसब बातों में मैँ आपको अपने परिवार के बारे में बताना ही भूल गयी. मेरा नाम आयुषी चटर्जी है मैँ अभी 19 साल की हूँ अभी 12th की पढाई कर रही हूँ.
माँ का नाम durga चटर्जी है एक बहुत ही सुशिल और घरेलु औरत है उम्र 44 मेरी माँ पूजा पाठ पर बहुत भरोसा करती है . मेरी माँ एकदम संस्कारी हिन्दू बंगाली औरत है, हमेशा सभी से प्यार से बात करना , दयालु और एक पतिव्रतां पत्नी जिसने आज तक अपने पति के अलावा किसी को नहीं देखा . पापा की लम्बी उम्र के लिए माँ साल भर में कई सारे व्रत रखती है. मेरी माँ इतनी प्यारी है उससे कोई भी ज्यादा देर तक नाराज़ नहीं रह सकता है और वो अगर नाराज़ रहा तो माँ कैसे भी कर के उसे मना के रखेगी. उसकी सुबह घर के काम काज से शुरू होती थी और रात भी घर के काम काज से ख़तम होती थी.
मेरे पापा का नाम सुधांशु चटर्जी है पापा का उन्देर्गर्मेन्ट्स का बहुत अच्छा बिज़नेस है.उनकी उम्र 55 साल है वो बहुत ही साधारण और अच्छे आदमी है. वो मुझे और माँ को बहुत प्यार करते है . मतलब देखा जाये तो हमारी फॅमिली एक टिपिकल बंगाली हिन्दू फॅमिली है .
पापा भी हमारे साथ आना चाहते थे लेकिन काम के वजह से वो एक महीने बाद आने का तय किये. नवरात्री का समय आने वाला था मैं और माँ प्लेन से कोलकाता पहुंचे. हमने एक टैक्सी बुक की और नानी के घर पहुंचे वहॉ एक मोहल्ले में नानी का घर आता था उस मोहल्ले में केवल बंगाली हिन्दू लोग ही रहते थे. हम नानी के घर के बहार जैसे ही टैक्सी से उतरे हमारी नानी और मोहल्ले के लोगो ने हमारा पटाखों से स्वागत किया.
क्यूंकि माँ का पूरा बचपन इन्ही लोगो के बिच बिता था और सारी आंटिया माँ को बहुत मानती थी, इसलिए भी क्यूंकि माँ बहुत ही सुन्दर थी और साथ ही साथ मेरी माँ एक पतिव्रतां संस्कारी हिन्दू औरत की बहुत अच्छी उदहारण थी. माँ शादी के बाद से अभी तक दो ही बार अपने मायके आयी थी . माँ ने एक संस्कारी औरत की तरह सभी औरतों के पैर छुई . फिर हम सभी घर के अंदर आ गए .
मैं ऊपर कमरे में फ्रेश होने चले गयी और माँ निचे सभी मोहल्ले वालों से हाल चाल पूछने लगी. थोड़ी देर में वो सभी चले गए , माँ ने मुझे आवाज़ लगायी बेटी आसू(माँ मुझे प्यार से आसू कहकर बुलाती है )निचे आओ खाना लग गया है. मैं निचे आकर माँ के साथ खाना खाने लगी . नानी ने हमारे लिए पनीर की सब्जी और चावल बनाया था.
एक और बात हमारे परिवार में कोई भी मांस मछली नहीं खता है , इसका कारन मेरी माँ है मेरी माँ मांस की बू से ही मन उल्टी जैसा हो जाता है . माँ ने आज तक मांस छुआ तक नहीं है. इसी कारन घर में कोई भी मांस नहीं बनता है लेकिन साथ साथ ये हमारे घर पुराना रित है की घर में मांस मछली ये सब नहीं बनेगा. खाना खाने के बाद माँ और मैं सोने चले गए. मेरा और माँ का कमरा अलग अलग था , देखते देखते ८ बज चुके थे रात के और सफर की थकान के कारन मै और माँ सोने चले गए.
सुबह जोर जोर से किसी के झगड़ा करने की आवाज़ से मेरी नींद टूटी. मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था सुबह के ७ बज रहे थे और थकान के कारन मेरी नींद पूरी भी नहीं हुयी थी, मैंने खिड़की से बाहर झाका . बाहर दो लड़के आपस में झगड़ रहे थे दोनों ने सफ़ेद टोपी सर पर पहनी हुयी थी, जिससे ये साफ़ पता चल रहा था की वो मुल्ले है.
मैं हैरान थी क्यूंकि हमारे मोहल्ले में सिर्फ हिन्दू लोग रहते थे. लेकिन पता नहीं कहा से ये मुल्ले हमारे घर के बहार झगड़ा कर रहे थे. आसपास के लोग सब कुछ देखकर भी चुप थे . ऐसा lag रहा था मनो ये रोज का था उनका इसीलिए कोई कुछ भी नहीं बोल रहा था उन मुल्लो को ये सब देखकर मैंने भी कुछ बोलना ठीक नहीं समझा .
वो लोग बाहर ही गन्दी गन्दी गालिया दे रहे थे एक दूसरे को जैसे- एक बोल रहा था मादरचोद तेरी maa की गांड मार दूंगा बिच सड़क पे साली बिलखते रहेगी दूसरा बोला बहनचोद तेरी बहन को अपने लौड़े पर उठा उठा के पेलुँगा.
फिर दूसरे ने बोला जा जा घर जाकर देख तेरी माँ का भोसड़ा बन रहा होगा रंडी की औलाद . इसी तरह वो लोग एक दूसरे को गन्दी गन्दी बातें बोल रहे थे . मेरा तो मन कर रहा था की जाके अभी उन मुल्लो को थप्पड़ जड़ दूँ.
मैंने खिड़की को वापस बंद कर दिया. अब मुझे नींद आने से रही थी इसीलिए मैंने थोड़ा कसरत करने का सोचा . नानी के घर में ग्राउंड फ्लोर और फर्स्ट फ्लोर था और ऊपर छत्त थी . घर में तीन कमरे, एक बड़ा हॉल , एक किचन, दो बाथरूम, एक गेस्ट रूम और सभी कमरों में बालकनी थी जो की मोहल्ले के सड़क की ओर ही निकली हुयी थी. गेस्ट रूम स्टोर रूम की तरह इस्तेमाल किया जाता था . उसमे काफी गन्दा भरा हुआ था. हॉल में एक सोफे और दो छोटे सोफे थे , उनके बिच एक सीसे का डाइनिंग टेबल था. सारे कमरे फर्स्ट फ्लोर पर ही थे , किचन, हॉल और स्टोररूम तीनो ग्राउंड फ्लोर पर थे.
मैं जब कमरे से बहार निकली तो मुझे निचे से बर्तन धोने की आवाज़ आने लगी . मुझे लगा नानी बर्तन धो रही होगी मैं निचे जाकर नानी को डरने का सोची. किचन के पास पहुचकर मैंने देखा की वो नानी नहीं मेरी माँ थी. सच में मेरी माँ दुनिया की सबसे अच्छी माँ है, कल के पुरे सफर के थकन के बावजूद वो इतनी सुबह उठ गयी और अभी घर के काम भी कर रही थी. माँ में बहुत संस्कार भरे हुए थे.
माँ बेसिन में बर्तन धो रही थी और में उनके पीछे ही खड़ी थी मैंने अपने डराने के प्लान को आजमाने का सोचने लगी.